आज एक नववर्ष की बधाई का कार्ड मिला। मेरे मित्र राजेन्द्र यादव , जो एक एशियन स्कूल चलाते हैं, कार्ड उनकी तरफ से था। कार्ड पर नोबेल पुरस्कार विजेता विस्लावा शिम्बोर्सका की नए वर्ष पर एक कविता छपी है।अद्भुत कविता है। इस कविता पर कोई टिप्पणी न करते हुए मैं पूरी कविता उस कार्ड से साभार पुनः प्रस्तुत कर रहा हूं।
- महेश आलोक
नव वर्ष की शुभ बधाई
- विस्लावा शिम्बोर्सका
कितनी ही चीजें थीं
जिन्हें इस वर्ष में होना था
पर नहीं हुईं
और जिन्हें नहीं होना था, हो गयीं।
खुशी और बसन्त जैसी चीजों को
और करीब आना था
पहाड़ों और घाटियों से उठ जाना था आतंक और भय का साया
इससे पहले कि झूठ और मक्कारी हमारे घर को तबाह करते
हमें सच की नींव डाल देनी थी
हमने सोचा था कि
आखिरकार खुद को भी
एक अच्छे और ताकतवर इंसान में
भरोसा करना होगा
लेकिन अफसोस
इस वर्ष में इंसान अच्छा और ताकतवर
एक साथ नहीं हो सका ।
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