अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

रविवार, 2 सितंबर 2012

हिन्दी आलोचना के शिखर पुरूष प्रो० नामवर सिंह का सम्मान एक आदर्श शिक्षक के रूप में


हिन्दी आलोचना के शिखर पुरूष प्रो० नामवर सिंह का सम्मान एक आदर्श शिक्षक के रूप में पहली बार ‘शब्दम्‌’ (साहित्य,संगीत,कला को समर्पित) संस्था द्वारा शिकोहाबाद(फिरोजाबाद)- उ०प्र० स्थित हिन्द परिसर में दिनांक- ५ सितम्बर २०१२ (शिक्षक दिवस) को किया जा रहा है। इस अवसर पर नामवर जी ‘ समालोचक की सामाजिक-सास्कृतिक भूमिका’ पर सारगर्भित ब्याख्यान भी देंगे। आप सभी आमंत्रित हैं।
स्थान- हिन्द परिसर, शिकोहाबाद(फिरोजाबाद)- उ०प्र०
दिनांक- ५ सितम्बर २०१२ (शिक्षक दिवस)
समय- ४.३० बजे सायं (४.१५ तक स्थान अवश्य ग्रहण कर लें)
                                     - महेश आलोक
                                     ‘शब्दम्‌’ सलाहकार            

   

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