अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

हिन्दी दिवस १४ सितंबर पर विशेष

                       

                 हिन्दी भारतवर्ष की संस्कृति का प्राण है-  किरण बजाज


    हिन्दी केवल भाषा नहीं है, हिन्दी भारतवर्ष की संस्कृति का प्राण है । हिन्दी भाषा ऐसा सूत्र है जो भारत के जन-जन के हृदय-पुष्प को माला की तरह पिरो कर एक कर देता है । हिन्दी में सम्पूर्ण विश्व में रचे-बसे भारतीयों को जोड़ने की अद्भुत क्षमता है ।  

शब्दम्‌ अध्यक्ष किरण बजाज बोलते हुए

   हिन्दी में मौलिक चिंतन, लेखन, सम्प्रेषणीयता, साहित्य, तकनीकी ,वित्त-व्यवसाय, कला, खेल, मनोरंजन, राजनीति और इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मीडिया में अपने विचार स्पष्ट रखने की अनुपम शक्ति है । साथ ही अध्यात्म ,प्रेम एवं शांति स्थापित करने की अनुपम निधि ।

    सूर्य पर बादल की काली टुकड़़ी आ जाय और चमकते हुए हीरे पर धूल चढ़ जाए तो इसका मतलब यह नही होता कि सूर्य में प्रकाश नहीं है और हीरे में चमक नहीं। उसी तरह आज हमारी हिन्दी के विकास-पुंज पर भ्रष्टाचार एवं मानसिक हीनता की कालिख छाई हुई है । हमें यह चाहिए कि किस तरह से इस तेजस्विनी, गरिमामयी हिन्दी का पूर्ण गौरव और तेज जन -जन के हृदय में मुखरित हो ।

    मेरे कहने का अर्थ यह कतई नहीं है कि हिन्दुस्तान की अन्य भाषाओं और बोलियों को तनिक भी कम महत्व दिया जाय।  हिन्दी समुद्र है ,उसमें सब नदियाँ मिलती हैं । सागर तो तब भरेगा जब सब नदियाँ भरी हुई हों । इसी तरह हिन्दी तो तब बढ़ेगी जब सब भारतीय भाषाएं समृद्ध हों । 

   विषाद का विषय है कि बहुसंख्य भारतीयों के हृदय एवं मन में एक खतरनाक रोग लग गया है वह यह है हिन्दी के प्रति हीन भावना एवं अंग्रेजी के प्रति उच्चतर भावना । अंग्रेजी सीखना और प्रयोग करना गलत नहीं है पर जो भारतीय मानसिकता में  अंग्रेजी व अंग्रेजियत ने सफलतापूर्वक कब्जा जमा लिया है वह भयावह है और संस्कृति को भयंकर हानि पहुँचाने वाला ।  

    इस आपातकाल परिस्थिति में यह अत्यन्त जरुरी है कि शीघ्रातिशीघ्र नई पीढ़ी को इस हीन मानसिकता के रोग से मुक्त कराया जाय और हिन्दी के प्रति सर्वप्रथम प्रेम  और अच्छी सोच पैदा की जाय । इसका प्रमुख दायित्व सरकार ,प्रत्येक शिक्षक ,संस्था और देशप्रेमी पर है ।

 

  

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