कला के माध्यम से ईश्वर को भी पा सकते हैं
फिल्मों ने कला के स्तर को क्षति पहुंचाई
- डा० आनंदा शंकर जयंत
डा० आनंदा शंकर जयंत |
आनंदा शंकर ने कहा कि नृत्यकला मात्र शरीर को कुछ आकृतियों और लयताल के साथ मंच पर प्रस्तुत कर देना नहीं है। कोई भी संस्कृति या कला, व्यक्ति या उसके समाज की पारिभाषा होती है। संस्कृति से पूरे समाज की पहचान बनती है। उन्होने कहा कि नृत्य उनके लिए परमेश्वर के समीप जाने का माध्यम है।
शिकोहाबाद के हिन्दलैंप्स में शब्दम् और स्पिक मैके के सहयोग से शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति के लिए आईं आनंदा शंकर ने मीडिया से बातचीत में अपने मन की बातें रखीं। उन्होंने आज के नृत्य को भौंडा प्रदर्शन बताया और कहा कि इसका उददेश्य मात्र मनोरंजन है। हालांकि अब तो स्वस्थ्य मनोरंजन मिलना भी कठिन होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि कला की अमूल्य धरोहर को सिर्फ मनोरंजन का साधन बना देना सही नहीं है।
देश-विदेश में अनेक कार्यक्रम देकर भारत की संस्कृति को सम्मान दिलाने वाली आनंदा ने कहा कि नृत्य न तो उनकी अभिरूचि है और न ही करियर। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए समय पास करने का माध्यम भी नहीं है। डांस मेरे लिए मेरा ईश्वर को पाने का साधन है। उन्होने कहा कि अगर कोई भी कलाकार अपनी प्रतिभा के साथ साधना का भाव जोड लेता है और उसे सच्चे अर्थ में साकार करने कोशिश करता है तो कला अलौकिक उददेश्यों की पूर्ति भी करती है। उन्होंने कहा कि नृत्य वह है जो करने वाले और देखने वाले, दोनों ही लोगों को आत्मा तक आनंद की यात्रा को ले जाए।
शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत करतीं आनंदा शंकर जयंत |
हिन्दलैंप्स, शिकोहाबाद के संस्कृति भवन में आयोजन
नृत्य की भावपूर्ण मुद्रा में आनंदा शंकर जयंत |
आनंदा शंकर जयंत की कला के जादू ने हिंदलैंप्स परिसर में दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पद्मश्री अलंकरण से अलंकृत आनन्दा शंकर की प्रस्तुति केवल शास्त्रीय नृत्य तक ही सीमित नहीं थी, उसमें नाटकीय अभिनय का भी व्यापक समावेश था। उन्होंने आधादर्जन प्रस्तुतियों से मंत्रमुग्ध कर दिया।
समारोह का शुभारंभ करने के बाद आनंदा शंकर का स्वागत करते हुए शब्दम् अध्यक्षा श्रीमती किरण बजाज और फीरोजाबाद की जिला मजिस्टेट श्रीमती संध्या तिवारी |
आनंदा ने कहा कि नृत्य मानव की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। हर रोज, हर शख्स नाचता है। उसकी आम दिनचर्या के कई हावभाव नाच की श्रेणी में हैं। लेकिन उनका प्रकटीकरण एक क्रम में नहीं होने से उन्हें स्पष्ट रूप से नृत्य नहीं कहा जा सकता है। कुचिपुडि और भरतनाट्यम् के अंतर को भी उन्होंने मुद्राओं के उदाहरण देकर समझाया।
कृष्ण के रोने का जीवंत रूप प्रस्तुत करतीं आनन्दा शंकर जयंत |
विश्वविख्यात नृत्यांगना ने गिरिराज को अंगुली पर उठाने का प्रसंग प्रस्तुत किया तो मिथिला के धनुष-यज्ञ को भी साकार किया। वहीं महाभारत के प्रसंग द्रोपदी के चीरहरण के माध्यम से करूणा का वातावरण बना दिया। अंत में उन्होंने स्कूली बच्चों की जिज्ञासाओं का समाधान और प्रश्नों के उत्तर भी दिए।
समारोह की आयोजक शब्दम् अध्य्क्ष श्रीमती किरण बजाज ने सहयोगी संस्था स्पिक मैके, कलाकार मंडल और अतिथियों का स्वागत किया।शब्दम सलाहकार मंडल के सदस्य डा० महेशं आलोक ने कला और कलाकारों का विस्तार से परिचय दिया। मुकेश मणिकांचन ने संचालन किया। सहायक श्रमायुक्त राजेश मिश्रा, प्रभागीय वनाधिकारी परमानंद यादव, डा० ए ०के० आहूजा, अरविंद तिवारी के अलावा ज्ञानदीप सीनियर सैकेंडरी स्कूल, शांतिदेवी आहूजा महाविद्यालय, ब्राइट स्कालर्स एकेडमी, देवभूमि पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों ने सहभागिता की।
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