महेश आलोक की डायरी
(1)
मैं जिससे प्यार करता हूँ कविता में वह शरीर नहीं है। बिना शरीर के प्यार। यह सिर्फ और सिर्फ कविता में सँभव है।
(2)
कैसे पता चलता है कि यह कविता अच्छी है और यह खराब।यह खूबसूरत है और यह बदसूरत। खराब और बदसूरत कविताएं वे हैं जो अच्छा और खूबसूरत होने का भ्रम पैदा करती हैं।
(3)
मैं कविता लिखता नहीं हूँ, कविता मुझे लिखती है और फेंक देती है जनता के महासमुद्र में । खारे पानी को बनाती है पीने लायक।
(4)
मै शब्दों को कविता में एक दूसरे से लड़ने से नहीं रोकता।खूब लड़ो। लहूलुहान कर दो एक दूसरे को।बस मृत्यु का कारण मत बनो कोई भी। मैं मरहम-पट्टी कर खड़ा कर दूँगा दुबारा लड़ने के लिये ऐसे जैसे कि लड़ रहे हो पहली बार, अर्थ रूपी खून को दसों दिशाओं में फैलाते हुए ।
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