अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

रविवार, 7 मार्च 2021

 आज दिनांक 07 मार्च 2021 को महिलाओं एवं बालिकाओं की सुरक्षा, सम्मान एवं स्वावलम्बन के लिए ‘मिशन शक्ति’ विशेष अभियान के अन्तर्गत हिंदी विभाग द्वारा आॅनलाइन संगोष्ठी (जूम ऐप एवं फेसबुक) ‘हिंदी साहित्य और स्त्री’ विषय पर आयोजित की गई।


संगोष्ठी की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की प्रति कुलपति प्रो॰ वाई॰ विमला ने की। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो॰ विमला ने कहा कि  महिला दिवस एक दिन का समारोह नहीं है हर दिन स्त्री का दिन है। साहित्य में लेखक अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति की प्रकार संप्रेषित करते हैं यह महत्वपूर्ण है। विमर्श भी वही कर पाता है जिसके पास कोई दृष्टिकोण होगा। पुरुष स्त्री विरोधी नहीं उसका साथी है। पिता के संस्कारों की कठोरता संतान को गढ़ती है। माँ का ममत्व स्त्री की शक्ति है। क्योंकि वह संतान को पालती पोषती है, स्त्री की आंतरिक शक्ति   को प्रकृति भी स्वीकार करती है, तभी प्रकृति ने स्त्री को चुना।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रो॰ बिन्दु शर्मा, समन्वयक मिशन शक्ति एवं आचार्य जन्तु विज्ञान विभाग रही उन्होंने कहा कि स्त्री का वास्तविक सशक्तिकरण तब होगा जब वह आर्थिक रूप में स्वावलंबी होगी। शिक्षित और आर्थिक रूप से सम्पन्न महिलाओं को अशिक्षित और कमजोर महिलाओं को संबल देना चाहिय।  मिशन शक्ति के अंतर्गत हम महिला अधिकारों और उनके संरक्षण को सुनिश्चित किया जाता है।

संगोष्ठी के समन्वयक प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग ने कार्यक्रम के प्रारम्भ में सभी अतिथियों का स्वागत किया एवं उन्होंने कहा कि स्त्री शिक्षा के तहत मिशन शक्ति के आयोजन विशेष महत्व रखते है। साहित्य समाज का दर्पण है। स्त्री स्वालंबन समाज का महत्वपूर्ण पक्ष है। स्त्री संदर्भों की चर्चा संगोष्ठी का मुख्य विषय है।
डाॅ॰ प्रतिभा रानी ने कहा कि स्त्री आत्मकथाएँ पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक स्तर पर स्वानुभूत संवेदनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति करती है।
डाॅ॰ रीता सिंह ने कहा कि स्त्री विमर्श स्त्री अस्मिता का प्रश्न है, इसमें पुरुष उसके सहयोगी की भूमिका में हो सकता है।
डाॅ॰ ममता ने कहा कि पुरुष भी स्त्री अधिकारों की बात करते हैं, हमारा उद्देश्य सिर्फ पुरुष विरोध नही बल्कि स्त्री समस्यों पर केंद्रित करना है।
वृंदा शर्मा ने कहा कि सोशल मीडिया  ने स्त्री की योग्यताओं को बक्से से निकाल कर दुनिया से जोड़ा है।
डाॅ॰ आरती राणा ने कहा कि लोक समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था की पोषक महिला ही होती है। 
डाॅ॰ अंजू ने कहा कि हिदी साहित्य में स्त्री के नायिका भेद से लेकर स्त्री के वर्तमान संघर्षों को आवाज दी है।
डाॅ॰ मीनाक्षी ने कहा कि टी वी धारावाहिक स्त्री के व्यवहारिक रूप को ना दिखाकर टी आर पी के मोह में उसका काल्पनिक नकारात्मक चित्रण किया जा रहा है।
सौम्या पाण्डेय ने कहा कि स्त्री स्वालंबन एक लम्बी यात्रा तय करके समाज में आता है। महिला विषयक समाज सुधारक आंदोलनों ने महत्ती भूमिका निभाई है। 
सुविज्ञा प्रशील ने कहा कि स्त्री लेखन की बारीकियों पर चर्चा करते हुए स्त्री लेखन के विविध पक्षों पर बात की।
स्वाति ने कहा कि स्त्री लेखन की एक  चुनौती होती है। स्त्री लेखन का क्षेत्र व्यापक और विस्तृत है।
कला संकायाध्यक्ष  एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी प्रो.लोहनी ने  सभी का धन्यवाद किया। 
संगोष्ठी का संचालन डाॅ॰ अंजू, डाॅ॰ आरती राणा, शिक्षण सहायक हिंदी विभाग ने किया। महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षक एवं विद्यार्थी कार्यक्रम से जूडे।

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