दिनांक 25 फरवरी 2021 को हिंदी विभाग, चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में ‘मातृभाषा हिंदी तथा नई शिक्षा नीति’ विषय पर गोष्ठी एवं निबंध लेखन प्रतियोगिता, आशुभाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। निबंध लेखन प्रतियोगिता तथा आशुभाषण प्रतियोगिता में विश्वविद्यालय परिसर के कई विभागों से छात्र-छात्राओं ने प्रतिभागिता की। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में ‘‘मातृभाषा हिंदी तथा नई शिक्षा नीति’’ विषय पर गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी का संचालन जूम ऐप एवं फेसबुक पर भी किया गया। गोष्ठी में स्वागत भाषण में प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय मातृभाषा में शिक्षण कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए अग्रसर है। नई शिक्षा नीति के क्रम में हम भविष्य में अपनी मातृभाषा मे शिक्षा प्राप्त करें और अन्य भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करने की मजबूरी हमारी नहीं रहेगी। इस संगोष्ठी से क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के प्रचार प्रसार और महत्व बढेगा। हमारे शासन स्तर पर हमारे प्रधान मंत्री मातृभाषा के संदर्भ में प्रशंसा के पात्र हैं। राष्ट्रीय स्तर पर, प्रदेशीय स्तर पर और विश्वविद्यालिय स्तर पर नई शिक्षा नीति के संदर्भ में प्रयास हो रहे हैं। यह संगोष्ठी उन प्रयासों को आगे बढाने और विद्वानों तक पहुंचाने का प्रयास है। आज के संदर्भों में हमें बहुभाषीय होना चाहिए। हिंदी के साथ-साथ उसकी सहयोगी भाषाओं को भी हमें जानना चाहिए। इससे हमारा ज्ञान व्यापक होगा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो॰ विनोद मिश्र, महासचिव, अंतरराष्ट्रीय हिंदी सचिवालय, माॅरीशस ने कहा कि भारत मातृभाषाओं का देश है। मातृभाषा राष्ट्रीय भाषा से आगे विश्व भाषा बनती है। हिंदी दुनिया की प्रथम पंाच समृद्ध भाषाओं में से एक है। भारत के नीति नियंताओं की प्राथमिकता हिंदी होनी चाहिए। जनता और सत्ता भाषा का अन्तर समाप्त होनी चाहिए। भाषा नीतियों से लेकर हमें मैकाले की नीतियों का केवल आलोचक नहीं बनना है बल्कि ऐसी नीतियाँ बनाने की जरूरत है जो जमीनी स्तर पर काम करें। मातृभाषा में शिक्षण के अभाव मे बौद्धिक विकास की बात करना अस्वभाविक है। हिंदी जन मन के भीतर विस्तार पाती है। भाषा सिर्फ रोजगार की भाषा बनकर न बढे़ बल्कि संस्कृति की भाषा बने और उसमें सृजनशीलता का विकास हो। भविष्य में विश्व व्यापार में हमारी महत्ता बढ़ेगी। उसी संदर्भ में हमारी जनभाषाएं हमें सशक्त रूप प्रदान करेंगी। हिंदी ने अनेक क्षेत्रों में अपनी प्रासंगिकता सिद्ध की है। 1905 में लोकमान्य तिलक ने जिस हिंदी की बात की। राष्ट्रीय स्तर पर स्वतन्त्रता आंदोलन में महात्मा गांधी ने और वर्तमान में भारत सरकार ने हिंदी के महत्व को स्वीकार किया है। हमारी भाषा संधि और विनम्रता की भाषा है। हिंदी रचना और विमर्श दोनों स्तर पर मजबूत भाषा है। तकनीक के वर्तमान समय में अनेक प्रौद्योगिकी संस्थानों ने हिंदी के महत्व को समझा है। भाषा की ताकत उसकी अभिव्यक्ति की क्षमता होती है, जो बनी रहनी चाहिए। भारत अनेक भाषाओं का समुच्चय है। इसकी क्षेत्रीय बोलियों और भाषाओं में भी अभिव्यक्ति की व्यापक क्षमता है। प्रो॰ वाई॰ विमला, मा॰ प्रतिकुलपति ने कहा कि हमारे देश में अनेक मातृभाषाएं हैं। क्षेत्रीय बोलियों को भी हम मातृभाषा के रूप में समझते हैं। मातृभाषा माता के समान होती है। निजी रूप में हिंदी ही मेरी मातृभाषा है क्योंकि मेरा जन्म इसी भूमि पर हुआ है। उत्तर भारत और मध्य भारत में हिंदी बोली जाती है जबकि भारत के तमाम प्रांतों में हिंदी समझी जाती है। पुस्तकों में भावाभिव्यक्ति की असीम क्षमता होती है। पुस्तकों से अलगाव हमारी परम्परा और संस्कृति से हमें दूर कर देता है। समय, स्थान और भाव के अनुरूप शब्द प्रयोग की प्रासंगिकता को हमें समझना चाहिए। प्रत्येक भाषा का अपना मर्म है। क्षेत्रीयता भाषा के महत्व को बढ़ाती है, कम नहीं करती। क्षेत्रीय भाषा में कुछ ऐसे मौलिक शब्द होते हैं जिनका किसी अन्य भाषा में अनुवाद नहीं हो सकता। मौलिकता ही भाषा की शक्ति है और मौलिकता का ही महत्व है। कार्यक्रम के तीसरे सत्र में आशुभाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया साथ ही निबंध प्रतियोगिता और आशुभाषण प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार वितरित किए गये। आशुभाषण प्रतियोगिता में विश्वविद्यालय परिसर के कई विभागों के छात्र-छात्राओं ने प्रतिभागिता की। प्रतियोगिता में डाॅ॰ गजेन्द्र सिंह, डाॅ॰ अरूणा दुबलिश और डाॅ॰ ममता निर्णायक रहे। प्रतियोगिताओं का परिणाम निम्नानुसार है - पुरस्कार निबंध प्रतियोगिता आशुभाषण प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार निकुंज कुमार निकुंज कुमार द्वितीय पुरस्कार सौम्या पांडे सौम्या पांडे तृतीय पुरस्कार अश्वनी कुमार भव्या पांडे सांत्वना पुरस्कार हर्षित चैधरी ख्याति भारद्वाज सांत्वना पुरस्कार अजय कुमार अश्वनी कुमार कार्यक्रम के संयोजक प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ किया गया। सत्रों का संचालन डाॅ॰ विद्यासागर सिंह, डाॅ॰ अंजू, डाॅ॰ आरती राणा तथा डाॅ॰ यज्ञेश कुमार ने किया। कार्यक्रम डाॅ॰ कविश्री, विनय, पूजा, अरूण, अजय, पिं्रसी, नवीन, शौर्य सिंह, कीर्ति चैधरी, विशाल चैधरी, लक्ष्य राठी, प्रियंका कुशवाहा, शाहवेज, इल्मा, भवित धवलिया, रेशमा जहाँ आदि उपस्थिति रहे।
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