अफजाल अहमद सैय्यद का जन्म गाजीपुर (उ.प्र.) में सन् 1946 में हुआ। उनके तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं - ‘छीनी हुई तारीख’ (1984), ‘दो जुबानों में सजा-ए-मौज’ (1990) तथा ‘रोकोको और दूसरी दुनियाएँ’ (2000) कविताओं के अलावा उनका एक ‘ग़ज़ल-संग्रह’ ‘खेमा-ए-सियाह’ नाम से प्रकाशित है।
शायरी मैंने ईजाद की- अफजाल अहमद सैय्यद
शायरी मैंने ईजाद की
कागज मिराकिश शहर के निवासियों ने ईजाद किया
हुरूफ फोनिश के निवासियों ने
शायरी मैंने ईजाद की
कब्र खोदने वालों ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर कब्जा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वालों ने कतार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा
रोटी की कतार में जब चींटियाँ भी आ खड़ी हो गयीं
तो फ़ाका ईजाद हुआ
शहतूत बेचने वालों ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाये
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने अन्तःपुर ईजाद किया
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया
फासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किये
तेज़ रफ्तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज रफ्तार के आगे लिटा दिया गया
मगर उस वक्त तक शायरी ईजाद हो चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने खेमा और कश्तियाँ बनायीं
और दूर-दराज मकामात तय किये
ख्वाजासरा ने मछली पकड़ने का काँटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया
दिल में चुभे हुए काँटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद की
और
जबर ने आखिरी बोली ईजाद की
मैंने सारी शायरी बेचकर आग खरीदी
और जबर का हाथ जला दिया।
(मलबूस = वस्त्र, लिबास। ख्वाजासरा = हरम का रखवाला हीजड़ा। जबर = अत्याचार)
काव्य- प्रसंग से साभार- प्रस्तुतकर्ता- परमेन्द्र सिंह
5 टिप्पणियाँ:
बेशक एक जबर्दस्त नज़्म ,शुक्रिया प्रस्तुत करने के लिए !
मैंने सारी शायरी बेचकर आग खरीदी
और जबर का हाथ जला दिया।
बहुत खूब!
मैंने सारी शायरी बेचकर आग खरीदी
और जबर का हाथ जला दिया।
bahut khoob!
क्या बात है। अद्भुत कविता है।
पाकिस्तान के बड़े कवि से परिचय कराने के लिये धन्यवाद!पढ़ने के बाद लंबे समय तक झकझोरती रही कविता। अद्भुत !
एक टिप्पणी भेजें