अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

सोमवार, 21 मार्च 2016

एक कवि की नोटबुक- महेश आलोक


                                                     बेतरतीब


फागुनी मौसम ने अपना रंग दिखाया और एक पारम्परिक होली गीत तैयार हो गया।इसे भी इस डायरी का हिस्सा बना रहा हूँ।
आप भी उसका आनन्द लें। ब्रज की होली के रंग में डूबकर-          


 होली का गीत

होरी खेलन आज सजन घर आ गयो री
छेड्यौ फागुन राग सजन घर आ गयो री

रंग अबीर गुलाल उड़ायौ
सखियन ने हुड़दंग मचायौ
खोल्यौ दिल के राज सजन घर आ गयो री

हुरियारे हैं घर पर आयौ
बाबा देवर सा मुस्कायौ
खूब करैं उत्पात सजन घर आ गयो री

भंग चढ़्यौ मौसम बौरायौ
साजन ने चुनरी सरकायौ
कौन करे अब लाज सजन घर आ गयो री

चोली अंगिया सब रंग डारी
ऐसी तो पिचकारी मारी
गारी देवैं सास सजन घर आ गयौ री

होरी खेलन आज सजन घर आ गयो री
छेड्यौ फागुन राग सजन घर आ गयो री


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