महेश आलोक की बेतरतीब डायरी
(58)
मैं जब सोता हूँ उस समय
कविता नहीं रच रहा होता हूँ
कविता मुझे थपकी देकर सुलाती है
बन्धु! मैं हमेशा जागती हूँ
रचने के लिये
स्वप्न देखना जरुरी है
(59)
कविता लिखना अन्ततः कला नहीं है।लेकिन बिना कला के कविता लिखी भी नहीं जा सकती, यह भी उतना ही सच और टिकाऊ विचार है।जो लोग इस विचार के विरोध में हैं, उनकी कविता भी इसी रचनात्मक समझ में चरितार्थ होती है।
(60)
एक अच्छी कविता और बुरी कविता में क्या अन्तर है? इसे समझने के लिये अच्छी पत्नी और बुरी पत्नी का अन्तर समझना जरुरी है।यही बात ठीक इसके उलट पति के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है।अगर आप यह अन्तर समझते हैं तो निश्चय ही आप कविता के सबसे बड़े मर्मज्ञ हैं।
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