आज दिनांक 2/8/2020 चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के तत्वावधान में नई शिक्षा नीति भारत के विकास की संभावनाएं- पर केंद्रित एक वेबगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम अध्यक्ष और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एन.के. तनेजा ने बहुत विस्तार से नयी शिक्षा नीति के सभी बिंदुओं को रेखांकित किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि नयी शिक्षा नीति की पहुंच समानता , गुणवत्ता ,वहनीय शिक्षा और उत्तरदायित्व जैसे बिंदुओं तक होगी। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि नयी शिक्षा नीति उच्च वर्ग ,मध्य वर्ग , निम्न वर्ग ,शहरी , ग्रामीण , महिला, पुरुष , जनजाति क्षेत्र एवं दिव्यांग जनों आदि सभी को ध्यान में रखकर बनाई गई है। यह शिक्षा नीति भारत को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगी। डॉ देवेंद्र सिंह असवाल सलाहकार माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री ( शिक्षा मंत्री) डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, ने नई शिक्षा नीति के तकनीकी पहलुओं और आधुनिक दुनिया में इसके परिणाम स्वरूप भारत की स्थिति में आने वाले परिवर्तनों के बारे में व्यापक रूप से बातचीत की। इस शिक्षा नीति को लेकर उनका विचार था, कि यह व्यापक विचार विमर्श और संवाद के पश्चात निर्मित हुई है। यह भारत के अतीत गौरवशाली परंपरा के साथ-साथ आधुनिक दुनिया में सूचना तकनीक ज्ञान के बीच एक संवाद की निर्मिती करती है। यह आधुनिक भारत की जरूरतों के हिसाब से निर्मित शिक्षा नीति है। इस शिक्षा नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है यह कौशल विकास संवर्धन को वृद्धि करने वाली होगी। इसके परिणाम स्वरूप भविष्य में काफी बदलाव आने वाले हैं। स्थानीय भाषा बोली को लेकर इसमें विशेष प्रावधान है। विद्यार्थियों के अधिगम की प्रक्रिया को सहज और सरल बनाने की और भी इसका आग्रह है। सरकार की ओर से इसके कुशल क्रियान्वयन के लिए भी तीव्र गति से प्रयास किए जाएंगे। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि और उत्तराखंड उच्च शिक्षा के पूर्व निदेशक प्रोफेसर सविता मोहन ने नई शिक्षा नीति के कई पहलुओं पर विस्तार विस्तार से चर्चा करते हुए उसे भारतीय साहित्य चिंतन पद्धति से उसे जोड़ा उन्होंने भारतीय पुरातन शिक्षा पद्धति की नीतियों को वर्तमान शिक्षा नीति से जोड़कर अपनी बात रखी उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषा का ज्ञान विद्यार्थी में स्वाभिमान और आत्मसम्मान के भाव को जागृत करता है दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र से संबंध रखने वाला विद्यार्थी भी अब अपनी क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्राप्त करके आत्मनिर्भर बन सकता है । ।नई शिक्षा नीति में स्थानीय नई शिक्षा नीति में लचीलापन है नई शिक्षा नीति बहु आयामी और बहु प्रतिभा शील है व्यक्ति के रोजगार के रास्ते खुलती है उन्होंने कहा कि अब विद्यार्थी व्यवसाय हेतु नहीं अपितु शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय जाएंगे और शिक्षा प्राप्त करना उनका उद्देश्य होगा। उन्होंने कहा कि यह नई शिक्षा नीति रविंद्र नाथ टैगोर की उस बात को याद दिलाती है जब वह कहते हैं कि शिक्षा वह है जो चोट करती है । यह नई शिक्षा नीति उसी तरह से विभिन्न पहलुओं को जोड़ती हुई भारत को विश्व गुरु बनाने के प्रयास को और मजबूत करती है शिक्षा की गुणवत्ता के साथ-साथ शिक्षक की गुणवत्ता भी इस नई शिक्षा नीति में सुनिश्चित है। इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता बेसिक शिक्षा तथा एस,सी,आर,टी, उत्तर प्रदेश के निदेशक डॉ सर्वेंद्र विक्रम जी ने कहा कि नयी शिक्षा नीति भविष्य की चुनौतियों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगी। उन्होंने कहा कि नयी शिक्षा नीति कक्षा पांच की शिक्षा में मातृभाषा, स्थानीय भाषा और क्षेत्रीय भाषाओं पर बल देती है, साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा आठ और आगे की शिक्षा में देने के लिए सुझाव दिया है। स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिए संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की बाध्यता नहीं होगी। छात्रों के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर अलग पाठ्यक्रम सामग्री विकसित करने की बात भी नई शिक्षा नीति में कही गई है साथ ही भारतीय संकेत भाषा इंडियन साइन लैंग्वेज को पूरे देश में मानकीकृत करने की बात भी इस नीति में कही गई है। नई शिक्षा नीति तकनीकी के समर्थन की बात भी करती है तथा शिक्षकों के सशक्तिकरण की बात भी करती है नई शिक्षा नीति में महिलाओं की शिक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं इस तरह हम कह सकते हैं कि नई शिक्षा नीति आगामी भारत को विश्व गुरु बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगी। डॉ जसपाली चौहान ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण होता है इस नई शिक्षा नीति ने मौलिक चिंतन के रास्ते खोले हैं । पाचवीं कक्षा तक मातृभाषा में अनिवार्य शिक्षा होना महत्वपूर्ण कदम है नई शिक्षा नीति का। क्योंकि मौलिक चिंतन अपनी भाषा में ही संभव है किसी अन्य भाषा में नहीं। इस रूप में नई शिक्षा नीति मौलिक चिंतन के रास्ते खोलती है। नई शिक्षा नीति में शोध की गुणवत्ता को विशेष महत्व मिला है देश की अर्थव्यवस्था धन से नहीं ज्ञान की शक्ति से बढ़ती है इस रूप में भारतीय नई शिक्षा नीति में शोध को अर्थव्यवस्था की दृष्टि से मजबूत बनाने के प्रयास किए गए हैं ।शोध राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र बनाना शोध की गुणवत्ता को बढ़ाता है शोध विश्वविद्यालय खोलने से राष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध और राष्ट्रीय सांस्कृतिक सरोकारों को एक नई जमीन मिलेगी । पाठ्यक्रम के संदर्भ में उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतक और भारतीय मनीषियों भारतीय ग्रंथों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने पर भारतीय युवा पीढ़ी में एक नई ऊर्जा का संचार होगा उन्होंने विवेकानंद की मैन मेकिंग पर बात करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति ने भारतीय विरासत को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया वह बहुत ही सराहनीय कार्य है नई शिक्षा नीति देश के युवाओं के लिए अपार संभावना लेकर आई है। कौशल संपन्न युवा बेरोजगार नहीं होंगे।नयी शिक्षा नीति छात्रों को सीमित दायरे से निकाल कर उन्हें एक विस्तृत धरातल प्रदान कर रही है । इससे पूर्व कार्यक्रम प्रारंभ करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो नवीन चन्द्र लोहनी ने सभी आमंत्रित वक्ताओं का स्वागत किया और विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने नई शिक्षा नीति की आवश्यकता क्यों इस बात को बहुत ही विस्तार और सूक्ष्मता के साथ रेखांकित किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि अंततः 34 साल के बाद देश को एक नई शिक्षा नीति मिली है और यह शिक्षा नीति अपने स्वरूप, उद्देश्य और लक्ष्यों में आमूलचूल परिवर्तनों को लिए हुए हैं। उन्होंने कहा कि मुझे पूरी उम्मीद है कि यह शिक्षा नीति भारत के भविष्य और आगामी चुनौतियों के समाधान में मददगार साबित होगा। उन्होंने इस शिक्षा नीति को ऐतिहासिक और अभूतपूर्व बताया। इस वैबगोष्ठी में विभिन्न राज्यों के शिक्षक , शोधार्थी और विद्यार्थी सम्मिलित रहे जिनमें प्रो. वी.रा.जगन्नाथन प्रो.अवनीश कुमार प्रो.अशोक चौबे प्रो.योगेंद्र सिंह, प्रो. पीके मिश्रा डॉ राजीव सीजेरिया, प्रो. अशोक चौबे, डॉ. मनोज कुमार श्रीवास्तव, डॉ साकेत शुक्ला,डॉ. उमा जोशी डॉ. विजय जयसवाल, डा अंजू, डा राजेश चौहान, डा मोनू सिंह, डा रविन्द्र राणा, योगेन्द्र सिंह मोहनी कुमार, डा अमित कुमार, डा विवेक सिंह, राजेश, डा सुमित, डा ममता तथा हिन्दी विभाग के विद्यार्थी भी उपस्थिति रहे।
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