आॅनलाइन वेबगोष्ठी/कार्यशाला में ‘भाषा विज्ञान की शब्दावली’ सत्र की अध्यक्षता प्रो॰ वाई विमला, मा॰ प्रति कुलपति जी ने की। कार्यशाला में विशिष्ट अतिथि प्रो॰ अवनीश कुमार, अध्यक्ष, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली, विशिष्ट वक्ता - प्रो॰ नरेश मिश्र, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग,केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा, प्रो॰ हेमंत जोशी, पूर्व आचार्य, आई॰आई॰एम॰सी॰, जे॰एन॰यू॰ परिसर, नई दिल्ली, श्री अनिल जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, प्रो॰ अनुपम श्रीवास्तव, केन्द्रीय ंिहंदी संस्थान, आगरा तथा प्रो॰ एन॰ के॰ तनेजा, मा॰ कुलपति जी, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ एवं प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, अध्यक्ष हिंदी विभाग शामिल रहे। समापन सत्र को संबोधित करते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि भारत की संस्कृति और सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता है भारत की भाषा संस्कृत ही विश्व की सभी भाषाओं की जननी है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्वीकारोक्ति की गई है कि शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा या क्षेत्रीय भाषा हो। जिसे सरकार की नई शिक्षा नीति में भी स्वीकार किया गया है। भारत के साथ ही स्वतंत्र देश जापान ने अपनी मातृ भाषा को ही प्राथमिकता दी है। पत्रकारिता भी एक बड़ा क्षेत्र है। जिससे जन सामान्य का सरोकार होता है। इन सबकी शब्दावली में ऐसे परिवर्तन होने चाहिए जिससे विद्यार्थी ज्ञानार्जन बौद्धिक क्षमता, एवं प्रश्न पूछने एवं चितंन की क्षमता विकसित हो। प्रो॰ वाई विमला मा॰ प्रति कुलपति जी ने समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि विज्ञान तर्क पर आधारित होता है। तदभव शब्दों का प्रयोग भी उतना ही होता है जितना तत्सम शब्दों का होता है। तत्सम शब्द हम शुरू से ही पढ़ते आए हैं। एक ही शब्द को हम कई रूप में प्रयोग कर सकते हैं।हिंदी बहुत ही वैज्ञानिक भाषा है। हम एक ही शब्द को संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया के रूप में देखते हैं - जैसे गया, गया, गया शब्द है। संस्कृत बड़ी ही समृद्ध भाषा है। भाषा को सम्मान दे सकते हैं, उसका अर्थ समझ कर। भाषा की वैज्ञानिकता को समझना आवश्यक है। ये जीवन एक भाषा को पूर्ण रूप से सीखने और समझने के लिए कम होता है। कार्यशाला के विशिष्ट अतिथि प्रो॰ अवनीश कुमार, अध्यक्ष वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली ने कहा कि हमंे विचार अपनी भाषा में ही आते हैं क्रियान्वयन किसी भी भाषा में हो सकता है। ज्ञान-विज्ञान शिक्षा अपनी भाषा में ही होना चाहिए। ई॰ जय सिंह रावत, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग नई दिल्ली ने कहा कि यदि शब्दावली मंे कोई शब्द नहीं मिलता तो आयोग को लिख सकते हैं। यदि हमारे पास तकनीकी शब्दावली होगी तो ही हम काम सुचारू रूप से कर पाएंगे। कार्यशाला में विशिष्ट वक्ता प्रो॰ नरेश मिश्र, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग,केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा ने कहा कि भाषा विज्ञान में केवल मानवीय भाषा का चिन्तन होता है। मानवीय भाषा की विशेषता है कि इसकी विस्तारिता विज्ञान की प्रयोगशाला से भाषा की प्रयोगशाला भिन्न होती है, वह होती है समाज। समाज में रहकर ही भाषा का अध्ययन किया जा सकता है। भाषा विज्ञान की शब्दावली अन्य शब्दावलियों की तुलना में भिन्न रहती है। आयोग की शब्दावली का आधार संस्कृत भाषा से है। संस्कृत के कारण सहजता एवं अन्य भाषाओं से जुड़ाव रहता है। अंग्रेजी के विस्तार के कारण हम उससे ज्यादा जुड़ गये हैं। इस कारण हम अंग्रेजी के शब्दकोश का अधिक प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी का वह शब्द भी लिया जा सकता है जो प्रचलित हो गया है। और उसके समांन्तर कोई शब्द नहीं मिल पा रहा है। यदि अन्य भारतीय भाषाओं के शब्द भी अनुकूल मिल रहे हैं तो उन्हें भी अपनाना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग होने वाले शब्द भी अपनाने चाहिए। यदि हम व्यक्ति बोली का अध्ययन करते हैं तो व्यक्ति विशेष के शब्द आएगे। हिंदी सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है अतः वह मातृ भाषा है। व्याकरण की शब्दावली भाषा से संबंधित होती है। भाषा विज्ञान का अर्थ है समस्त मानवीय भाषाओं का अध्ययन। भाषा विज्ञान का अध्ययन व्यैक्तिक सम्पत्ति न होकर सामाजिक सम्पत्ति है। हमें भाषा विज्ञान की शब्दावली में समय के अनुरूप शब्दों को लेना होगा। भाषा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी एकरूपता है। कार्यशाला में विशिष्ट वक्ता प्रो॰ अनुपम श्रीवास्तव, केन्द्रीय ंिहंदी संस्थान, आगरा ने कहा कि भाषा विज्ञान की शब्दावली की चर्चा करते समय उसके स्रोत और आधार पर भी चर्चा आवश्यक है। इसे तीन भागों में बाँट सकते हैं। वर्तमान में कम्प्यूटर, प्रबन्धन और अर्थशास्त्र भी जुड़ गये हैं। हमें हिंदी की शब्दावली पर ध्यान देना चाहिए। हमें आयेाग द्वारा निर्मित शब्दावली का विश्लेषण करना आवश्यक है। शब्दावली का निर्माण करते समय भाषा विज्ञान के विद्वान इस कार्य से जुड़े रहे हैं, जिन्होंने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष शब्दावली निर्माण में सहयोग प्रदान किया है। हिंदी में जो अनुसंधान कार्य हो रहे हैं उनमें आयोग की शब्दावली महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। संस्कृत के व्याकरण में पाणिनी का विशेष योगदान है। आज नये शोध, नये अनुसंधान कार्य हो रहे हैं। उनमें शब्दावली की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज कुछ तत्व मूल भाषा से लिए हैं और कुछ शब्द अन्य भाषा से आते हैं। भाषा विज्ञान शब्द स्वयं में महत्वपूर्ण है। जिसका अर्थ ही भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन है। भाषा विज्ञान के अध्ययन में छात्रों को भाषा का स्वरूप, तकनीकी का ज्ञान प्रदान किया जाता है। पारिभाषिक शब्दावली से अपेक्षाएं होती हैं कि वे सरल हो, सरलता एक अनिवार्य व महत्वपूर्ण तत्व है। शब्दावली निर्माण में संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं का भी सहयोग लिया जाना चाहिए। ताकि शब्दावली का पूर्णतः विकास हो सके। कार्यशाला में विशिष्ट वक्ता अनिल जोशी ने कहा कि आयोग समय-समय पर इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। जिससे जनसामान्य लाभांवित हो रहें हैं। प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि शब्दावली सरल करें। शब्दावली को लेकर जो समस्या हैं वो वास्तविक है। अंततः भाषा और शब्दावली मनुष्य का हित साधने के लिए है। एक ऐतिहासिक तथ्य है हिंदी और हिन्दुस्तानी को लेकर ही गाँधी जी ने कहा है कि मै हिंदी के पक्ष में न होकर हिन्दुस्तानी के पक्ष में हूँ। जो पहल हमें करनी थी वह हमने नहीं की। महाराष्ट्र में स्टेशन के लिए स्थानक शब्द का प्रयोग होता है इस प्रकार की पहल हिंदी भाषी समाज को भी करनी चाहिए। उत्तर भारत में समुद्र से जुडे़ शब्द नहीं हैं बल्कि पर्वत से जुडे़ शब्द हैं परन्तु हमें दोनों से सम्बन्धित शब्दों को शामिल करना चाहिए। किसी शब्दावली का निर्माण करते समय टेस्ट करना चाहिए कि हम इन शब्दों का प्रयोग कर भी रहे हैं या नहीं। आज हमें शब्दावली के शब्दों पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है। आज पूरे देश में कुछ शब्दों को लेकर विवाद है उन शब्दों पर विचार करने की आवश्यकता है। तभी शब्दावली की कल्पना सही एवं सफल हो पायेगी। शब्दावली जनजीवन से जुड़ी हुई होनी चाहिए। उसमें अन्य भाषा के शब्दों का भी समावेश होना चाहिए। महत्वपूर्ण यह है कि शब्दावली का विवाद विद्वानों को बुलाकर समाधान करने की आवश्यकता है। हम मौलिक रुप से नई विचार धारा का समन्वय करें। कार्यशाला में विशिष्ट वक्ता प्रो॰ हेमन्त जोशी ने कहा कि शब्दावली निर्माण में आयोग में जिस स्तर के विद्वान होने चाहिए वह नहीं है। वह कोश विज्ञानी होना चाहिए साथ ही भाषाविद भी हों। शब्दकोश में अलग-अलग तरह के शब्द प्रयोग हो रहे हैं। इससे भ्रम बना रहता है। कई बार अनावश्यक शब्दों का भी प्रयोग हो रहा है। पत्रकारिता में सुविधापरक विशेष शब्दो का प्रयोग हो रहा है। कई शब्द प्रयोग किये जा रहे हैं परन्तु वे अर्थ की दृष्टि से सही नहीं हैं। शब्द निर्माण करते समय उसकी सारगर्भिता पर ध्यान दे। उपलब्धियाँ अर्जित कर लेना ही शीर्ष नहीं है अपितु गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कला संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी ने वेबगोष्ठी/कार्यशाला के तीसरे दिन समापन सत्र में सभी अतिथियों, वक्ताओं, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के अधिकारियों, विश्वविद्यालय प्रशासन का आभार व्यक्त किया तथा कहा कि भाषा विज्ञान और शब्दावली का ज्ञान हम सभी तक पहुँचा। भाषा बदलने की कोई जिद नहीं है, भाषा विकसित होती है तो दुनिया की तमाम भाषाओं से जुड़ती है। शब्द सृजन करें। आज भूमण्डलीकरण के समय में सभी भाषाओं के शब्दों का आयात-निर्यात होते रहना चाहिए। इसी से शब्दावली विकसित होगी। हिंदी अगर दुनिया में पहुँचती है तो साथ ही भारतीय संस्कृति एवं परम्परा का भी आदान प्रदान होगा। चीन मेरे अनुभव का क्षेत्र है। वहाँ नये शब्द गढ़े जा रहे हैं। हमारा उद्देश्य है कि ऐसी शब्दावली का निर्माण करें जो जन सामान्य के लिए सर्वसुलभ हो। वेबगोष्ठी/कार्यशाला का संचालन डाॅ॰ अंजू, शिक्षण सहायक ने किया। वेबगोष्ठी/कार्यशाला में हिंदी विभाग के डाॅ॰ विद्यासागर सिंह, डाॅ॰ यज्ञेश कुमार, डाॅ॰ प्रवीण कटारिया, आयोग से जय सिंह रावत, शहजाद, अशमद अंसारी, श्रीमती विनोदिनी तथा हिंदी विभाग के छात्र मोहनी कुमार, ममता, सौम्या पाण्डेय आदि उपस्थित रहे।
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