अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

रविवार, 17 अप्रैल 2011

अंतिम आदमी अंतिम रास्ता - - महेश आलोक

                      अंतिम आदमी अंतिम रास्ता
                                                                - महेश आलोक


        अंतिम रास्ता जहां मैदान के साथ छोड़ता है शहर
        वहीं अंतिम आदमी रास्ता बनाता है
        अंतिम आदमी के पास रास्ता बनाने के नियम हैं
        अंतिम आदमी पहले नियम में रास्ता बनाता है
        नियम में इतना कुहरा है कि कुहरा रास्ता की तरह
        दिखता है। कुहरा में सचमुच का अंतरिक्ष है। सचमुच
        का आकाश है अंतरिक्ष में। अंतरिक्ष में
        जितना आकाश है उतने आकाश में सचमुच का
        सूरज है। जितनी सूरज में रोशनी है उतना सूरज में
        रास्ता है। जितना सूरज में रास्ता है उतनी पृथ्वी
        अंतिम आदमी के पास है जहां उसका घर है जहां
        अंतिम रास्ता मैदान के साथ
        छोड़ता है शहर

       अंतिम आदमी के पास एक अंतिम रास्ता है

       मैंने सुना है जिस दिन बनायेगा वह अंतिम रास्ता
       पृथ्वी किसी लदे-फंदे ट्रक की तरह
       भाग न जाये
       अपने गर्भ में 

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