अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

सोमवार, 17 सितंबर 2012


          हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में समादृत होने का सफर आज भी अधूरा है


                                        (नारायण कालेज,शिकोहाबाद में हिन्दी-दिवस मनाया गया) 

मुख्य अतिथि का सम्मान करते प्राचार्य  

    ‘ दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली पांच भाषाओं में से एक हिंदी भारत की राजभाषा बनकर भी अभी वह मुकाम हासिल नहीं कर पाई है जिसकी वह हकदार है।देश की सम्पर्क भाषा के रूप में अंगीकार किए जाने के बावजूद राष्ट्रभाषा के रूप में समादृत होने का इसका सफर आज भी अधूरा है।’डा० रामसनेही लाल शर्मा ने हिन्दी दिवस के अवसर पर यह पीड़ा, नारायण कालेज,शिकोहाबाद के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित हिन्दी-दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए ब्यक्त की। इसके पूर्व उनका सम्मान एक सह्र्दय हिन्दी सेवी के रूप में किया गया।

   इस अवसर पर प्राचार्य डा० आर० के० पालीवाल ने कहा कि ‘हम हिन्दी की बात कर रहे हैं। उसको अपनाए जाने की बात कर रहे हैं। पर हिन्दी दिवस मनाते ही क्यों हैं, हिन्दी तो मातृभाषा है, उसका कोई जन्म दिवस कैसे हो सकता है। पर हमारे यहां है, जिस धरती की वह भाषा है, जहां उसका विकास, उद्भव हुआ, वहां उसका दिवस है। और दिवस भी यों नहीं बल्कि वह दिन याद कराता है कि हिन्दी को उसका दर्जा देने के लिए देश की संविधान सभा में जम कर बहस हुई। हिन्दी के पक्षधर भी हिन्दी में नहीं बल्कि अंग्रेजी में बोले।’

   हिन्दी विभागाध्यक्ष डा० अखिलेश श्रोत्रिय ने कहा कि ‘संवैधानिक स्थिति के आधार पर तो आज भी भारत की राजभाषा हिंदी है और अंग्रेज़ी सह भाषा है, लेकिन वास्तविकता क्या है यह किसी से छुपी नहीं है।कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती। भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिंदी को अपनाना चाहिए।’

 डा० महेश आलोक  बोलते हुए

   युवा कवि-समीक्षक और विभाग में एसोशिएट प्रोफेसर डा० महेश आलोक ने कहा ‘जब संविधान पारित हुआ तब यह आशा जागी थी कि राजभाषा हिंदी के प्रयोग में तेजी से प्रगति होगी और सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित होगी। लेकिन बाद के वर्षो में संविधान के संकल्पों का निष्कर्ष शायद कहीं खो गया। सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी की शक्ति, क्षमता और सामर्थ्य अकाट्य और अदम्य है लेकिन सवाल यह है कि संविधान के सपने को साकार करने के लिए हमने क्या किया? हम अंग्रेजी पढ़ें, सीखें अवश्य मगर उसे अपने दिलो-दिमाग पर राज करने से रोकें, तभी हिंदी आगे बढ़ेगी और राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की यह घोषणा साकार होगी -
“है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी-भरी
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी।”

   विभाग में एसोशिएट प्रोफेसर डा० अनुपमा चतुर्वेदी ने कहा ‘ सच तो यह है कि आज भी गुलामी की मानसिकता हमारा पीछा नहीं छोड़ रही है। आज हम अंग्रेजों के नहीं, लेकिन अंग्रेजों के गुलाम जरूर हैं। यही वजह है कि काफी कुछ सरकारी और लगभग पूरा गैर सरकारी काम अंग्रेजी में ही होता है। दुकानों व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के साइनबोर्ड तथा होटलों, रेस्टोरेंटों के मेनू अंग्रेजी में ही होते हैं। इसी तरह ज्यादातर नियम-कानून की किताबें अंग्रेजी में होती हैं।’

   इस अवसर पर कालेज के सभी संकायों के छात्र और छात्राएं भारी संख्या में उपस्थित थे। विभागीय सहयोगियों में डा० हेमलता सुमन, डा० रेखा जैन, डा०एस० डी० सिंह, डा० विनीता कटियार, डा० साज़िया, डा०वी०के०सक्सेना,डा० रवि विनवाल तथा शिक्षणेत्तर कर्मचारी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डा० महेश आलोक एवं धन्यवाद ज्ञापन डा० रेखा जैन ने किया।



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