अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

बेतरतीब - महेश आलोक




                                               एक कवि की नोटबुक                                        



                                                             (52)

मैं अनुभव के सत्य में विश्वास करता हूँ। बिना उसके कोई भी कविता मात्र तथ्य है।यह बात हर समय की कविता पर लागू होती है। आज तमाम कविताएं मात्र तथ्यात्मक हैं। कवि ने उसे अनुभव जगत का सत्य नहीं बनाया है। उसे रागात्मकता, अनुभव की परिपक्वता, अर्थ और सँगीत की ध्वनियों के परस्पर सह-सँवाद, यथार्थ और कल्पना के कलात्मक युग्म की रचना-प्रक्रिया से गुजरना ही पड़ेगा, तभी वह पाठक के लिये उपयोगी है,अन्यथा कूड़ा है।
                                                               (53)


एक कवि की सबसे बड़ी पूँजी क्या है?अद्द्वितीय अनुभव और सजग पाठक। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि साधारणीकरण की प्रक्रिया  सोच और सँवेदना के किस धरातल पर चरितार्थ हो रही है। उस अनुभव का सही पाठक तक सँप्रेषित होना जरुरी है।

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