अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

सोमवार, 9 मई 2016

कुछ कवितानुमा टिप्पणियाँ- महेश आलोक



                                           महेश आलोक की बेतरतीब डायरी



(58)

मैं जब सोता हूँ उस समय
कविता नहीं रच रहा होता हूँ
कविता मुझे थपकी देकर सुलाती है

बन्धु! मैं हमेशा जागती हूँ

रचने के लिये
स्वप्न देखना जरुरी है

(59)

कविता लिखना अन्ततः कला नहीं है।लेकिन बिना कला के कविता लिखी भी नहीं जा सकती, यह भी उतना ही सच और टिकाऊ विचार है।जो लोग इस विचार के विरोध में हैं, उनकी कविता भी इसी रचनात्मक समझ में चरितार्थ होती है।

(60)

एक अच्छी कविता और बुरी कविता में क्या अन्तर है? इसे समझने के लिये अच्छी पत्नी और बुरी पत्नी का अन्तर समझना जरुरी है।यही बात ठीक इसके उलट पति के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है।अगर आप यह अन्तर समझते हैं तो निश्चय ही आप कविता के सबसे बड़े मर्मज्ञ हैं।

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