अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

शनिवार, 1 जनवरी 2011

नव वर्ष की शुभ बधाई

आज एक नववर्ष की बधाई का कार्ड मिला। मेरे मित्र राजेन्द्र यादव ,  जो एक एशियन स्कूल चलाते हैं, कार्ड उनकी तरफ से था। कार्ड पर नोबेल पुरस्कार विजेता विस्लावा शिम्बोर्सका की नए वर्ष पर एक कविता छपी है।अद्भुत कविता है। इस कविता पर कोई टिप्पणी न करते हुए मैं पूरी कविता उस कार्ड से साभार पुनः प्रस्तुत कर रहा हूं।
                                                                                                                                        - महेश आलोक

                                                       नव वर्ष की शुभ बधाई
                                                                                                     - विस्लावा शिम्बोर्सका

कितनी ही चीजें थीं
जिन्हें इस वर्ष में होना था
पर नहीं हुईं
और जिन्हें नहीं होना था, हो गयीं।
                                        
खुशी और बसन्त जैसी चीजों को
और करीब आना था
पहाड़ों और घाटियों से उठ जाना था आतंक और भय का साया
इससे पहले कि झूठ और मक्कारी हमारे घर को तबाह करते
हमें सच की नींव डाल देनी थी

हमने सोचा था कि
आखिरकार खुद को भी
एक अच्छे और ताकतवर इंसान में
भरोसा करना होगा

लेकिन अफसोस
इस वर्ष में इंसान अच्छा और ताकतवर
एक साथ नहीं हो सका ।


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3 टिप्पणियाँ:

Archana Kashyap ने कहा…

alok sir, yeh kavita facebook par bhi de dete to achha tha.maine blog par padhi, sachmuch samkaaleen sachaai ko byakt kartI hai."

संगीता पांडे ने कहा…

कविता अच्छी है। नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं!

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

सुंदर कविता....नववर्ष की शुभकामनायें आपको भी .....

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