अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

मंगलवार, 4 नवंबर 2014

डा0महेश आलोक को वर्ष 2013 का उ0प्र0हिन्दी संस्थान का विश्वविद्यालय स्तरीय साहित्यकार सम्मान

                 डा0महेश आलोक को वर्ष 2013 का उ0प्र0हिन्दी संस्थान का
                      विश्वविद्यालय स्तरीय साहित्यकार सम्मान मिला
 डा0महेश आलोक

डा0महेश आलोक को वर्ष 2013 का उ0प्र0हिन्दी संस्थान का विश्वविद्यालय स्तरीय साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ है।शिकोहाबाद के लिये यह गौरव की बात है।डा0महेश आलोक चर्चित युवा कवि, आलोचक हैं एवं वर्तमान में नारायण महाविद्यालय, शिकोहाबाद में हिन्दी विभागाध्यक्ष हैं।डा0महेश आलोक की गणना समकालीन हिन्दी कविता के दसवें दशक के महत्वपूर्ण युवा कवियों में की जाती है। ‘चलो कुछ खेल जैसा खेलें’-डा0 महेश आलोक का चर्चित काव्य संग्रह है।इसके आलावा डा0 महेश आलोक की तीन आलोचनात्मक कृतियां भी प्रकाशित हैं तथा तीन आलोचनात्मक कृतियां तथा एक कविता संग्रह प्रकाशनाधीन हैं।डा0महेश आलोक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनारों में विषय विशेषज्ञ के रुप में बुलाये जाते रहे हैं।आपकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी,मराठी एवं पंजाबी भाषा में भी हुआ है।महाविद्यालय के प्राचार्य डा0वी0के0सक्सेना,उप-प्राचार्य डा0जे0के अवस्थी तथा हिन्दी विभाग के सहयोगियों ने डा0महेश आलोक को बधाई देते हुए अत्यन्त हर्ष व्यक्त किया है।शहर के गणमान्य व्यक्तियों में उमाशंकर शर्मा, डा0ए0के0आहूजा,अरविन्द तिवारी,मंजर-उल-वासै आदि ने महेश आलोक को बधाई देते हुए प्रसन्नता व्यक्त किया है।    

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