अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

शनिवार, 14 नवंबर 2015

एक बोध कविता-कथा- महेश आलोक

कुछ कवितानुमा टिप्पणियाँ(महेश आलोक की बेतरतीब डायरी)

एक कविता जिसे आप बोध कविता-कथा कह सकते हैं-


एक राजा को उपहार में बाज के दो बच्चे  मिले । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे। राजा ने देखभाल के लिए एक आदमी को नियुक्त कर दिया। कुछ समय बीत जाने पर राजा बाजों को देखने उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था। दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे। राजा ने कहा, ” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो । “ इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे , पर एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था , दूसरा कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था। ये देख राजा ने सवाल किया। ” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।” राजा  दोनों को ही उड़ना देखना चाहते थे।राजा ने ऐलान कराया कि जो इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा। एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे,  पर बाज थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता। फिर एक दिन एक व्यक्ति ने दोनों बाज आसमान में उडा दिया। अगले दिन दरबार में हाजिर हुआ। उसे स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा , ” मैं बहुत प्रसन्न हूँ ,बस तुम बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर दिखाया “ “मालिक ! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिस पर बैठने का बाज आदी हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।
“ इसलिए मैं अपने दोस्तों से कहता हूँ कि हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं। लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदी हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ बड़ा करने की काबिलियत को भूल जाते हैं। यदि आप भी सालों से किसी ऐसे ही काम में लगे हैं जो आपकी शक्ति के मुताबिक नहीं है तो एक बार ज़रूर सोचिये कि कहीं आपको भी उस डाल को काटने की ज़रुरत तो नहीं जिसपर आप बैठे हैं ?

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