अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

महेश आलोक की बेतरतीब डायरी

कुछ कवितानुमा टिप्पणियाँ(महेश आलोक की बेतरतीब डायरी)

                                                             (1)

मैं नियति पर विश्वास नहीं करता। लेकिन अगर इस शब्द का इस्तेमाल करना ही पड़े तो क्या इस तरह कहा जा सकता है क्या कि मेरे द्वारा देखे गये सपने की परिणिति है नियति। मेरे घर के बगल में रहने वाले रसूल चाचा जो टेलर मास्टर हैं और दो जून की रोटी बमुश्किल कमा पाते हैं, अक्सर हँस कर कहते हैं बेटा- हम जैसे लोग तो पूरी जिन्दगी सपने देखने में काट देते हैं।सपने देखना ही हमारी नियति है।ऊपरवाला भी यहीं तक की इजाजत देता है हमें। मेरी सारी ‘रेशनेलिटी’ धरी रह जाती है यहाँ पर।

                                                            (2)

वह जो सूरज है हर शाम अपने कीचड़ सने पाँव मेरी कविता में धोता है और प्रवेश कर जाता है किसी अत्यन्त सुरक्षित कमरे में सोने के लिए।एक ही काम रोज रोज।ऊबता नहीं है वह। सोचता हूँ, मेरी कविता में आने के पहले इतना कीचड़ लगता कैसे है उसके पैर में।पूछता हूँ तो हँस कर टाल देता है मेरी बात। हालाँकि कभी कभी देखने लगता है नदी और सँसद की तरफ।

                                                            (3)

मैने महसूस किया कि लम्बे समय से मैं किसी ज्यामितिक आकार में ढलता जा रहा हूँ।त्रिभुज,षटभुज,वृत्त- क्या-क्या बनता जा रहा हूँ बिना किसी प्रतिरोध के। पत्नी ताने देती है कि तुम गणित के प्रश्नों की तरह जटिल से जटिलतर होते जा रहे हो। तुम्हे समझना तुम्हारी कविता से ज्यादा कठिन है। ऐसी कविता कब लिखूँगा जब पूरा परिवार एक सीधी सरल रेखा समझने लगे मुझे और मेरा बेटा सरपट साइकिल दौड़ाता हुआ बिना किसी गतिरोधक के कल्लू मिस्त्री को पिछली सीट पर बैठाकर कर आए मेरी कविताओं में सैर।

                                                           (4)
कभी आपने ऐसा दृश्य देखा है जिसमें आकाश में एक चिड़िया उड़ रही है और परेशान है कि कोई चील या बाज झपट्टा मारकर दबोच न ले।आखिर चिड़िया का स्वतन्त्र होकर घूमना,उड़ना क्यों खल रहा है उसे? क्या ऐसा ही कुछ उस स्त्री के साथ नहीं हो रहा है जो उड़ तो रही है लेकिन डरी हुई है उस पुरुष रुपी बाज से जो कह रहा है कि उसके अधिकार क्षेत्र में स्वतन्त्र होकर घूमना मृत्यु को दावत देना है।मैं उस समय बहुत खुश हुआ जब किसी बेटी ने गली के एक गुन्डे को चप्पलों से पीटा और कुछ और लड़्कियाँ जो उस गुन्डे से परेशान थीं, साहस करके सामने आयीं, और उसे ऐसा सबक सिखाया कि पुलिस भी देखती रह गयी।साहस! आत्मबल! प्राथमिक स्तर पर तो यही अस्त्र है उस बाज से लड़ने के लिये। अपनी स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने के लिये।

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